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स्व॒यं द॑धिध्वे॒ तवि॑षीं॒ यथा॑ वि॒द बृ॒हन्म॑हान्त उर्वि॒या वि रा॑जथ। उ॒तान्तरि॑क्षं ममिरे॒ व्योज॑सा॒ शुभं॑ या॒तामनु॒ रथा॑ अवृत्सत ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svayaṁ dadhidhve taviṣīṁ yathā vida bṛhan mahānta urviyā vi rājatha | utāntarikṣam mamire vy ojasā śubhaṁ yātām anu rathā avṛtsata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्व॒यम्। द॒धि॒ध्वे॒। तवि॑षीम्। यथा॑। वि॒द। बृ॒हत्। म॒हा॒न्तः॒। उ॒र्वि॒या। वि। रा॒ज॒थ॒। उ॒त। अ॒न्तरिक्ष॑म्। म॒मि॒रे॒। वि। ओज॑सा। शुभ॑म्। या॒ताम्। अनु॑। रथाः॑। अ॒वृ॒त्स॒त॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:55» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजजनो ! (यथा) जैसे (महान्तः) गम्भीर आशयवाले आप लोग (तविषीम्) बलयुक्त सेना को (स्वयम्) अपने से (दधिध्वे) धारण कीजिये और (बृहत्) बड़े को (विद) जानिये (उर्विया) बहुत से (वि) विशेष करके (राजथ) शोभित हूजिये और जैसे (शुभम्) कल्याण को (याताम्) प्राप्त होते हुओं के (रथाः) वाहन (अनु, अवृत्सत) अनुकूल वर्तमान हैं (उत) और (अन्तरिक्षम्) आकाश को (वि) विशेष करके (ममिरे) व्याप्त होते हैं, वैसे आप लोग (ओजसा) बल से (वि) विशेष करके (राजथ) शोभित हूजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! ब्रह्मचर्य्य से शरीर और आत्मा के बल को धारण करके और क्रियाकुशलता को जान के जैसे ईश्वर अन्तरिक्ष में सम्पूर्ण पदार्थों को उत्पन्न करता है, वैसे ही आप लोग अनेक व्यवहारों को सिद्ध कीजिये ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे राजजना ! यथा महान्तो यूयं तविषीं स्वयं दधिध्वे बृहद्विदोर्विया वि राजथ यथा शुभं यातां रथा अन्ववृत्सतोताप्यन्तिक्षं वि ममिरे तथा यूयमोजसा विराजथ ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वयम्) (दधिध्वे) धरत (तविषीम्) बलेन युक्तां सेनाम् (यथा) (विद) विजानीत (बृहत्) महत् (महान्तः) महाशयाः (उर्विया) बहुना (वि) (राजथ) (उत) (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (ममिरे) व्याप्नुवन्ति (वि) (ओजसा) बलेन (शुभम्) (याताम्) प्राप्नुताम् (अनु) (रथाः) (अवृत्सत) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! ब्रह्मचर्य्येण शरीरात्मबलं धृत्वा क्रियाकौशलं विज्ञाय यथेश्वरोऽन्तरिक्षे सर्वान् पदार्थान् सृजति तथैव यूयमनेकान् व्यवहारान् साध्नुत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ब्रह्मचर्याने शरीर, आत्मबल मिळवा. क्रियाकौशल्य जाणून जसा ईश्वर अंतरिक्षातील पदार्थ उत्पन्न करतो तसे अनेक व्यवहार करा. ॥ २ ॥